नई दिल्ली दोनों हाथ ऊपर उठाए वीरेंदर सहवाग की इस तस्वीर को देखिए। यूं तो टेस्ट क्रिकेट में सहवाग की यह तस्वीर आपने कुछ 23 बार देखी होगी। जब वह हेलमेट उतारकर दोनों हाथ उठा लेते हैं। लेकिन इस तस्वीर की बात अलग है। और साथ ही अलग है इसके पीछे की कहानी भी। तो आखिर वह क्या बात है जो इस लम्हे को बाकी से जुदा करती है। आज ही का दिन था। और साल था 2004। भारतीय टीम पाकिस्तान के दौरे पर थी। जी, पाकिस्तान की धरती पर भारत का इतिहास दौरा। मुल्तान का मैदान था। टेस्ट मैच के पहले दिन भारत का स्कोर दो विकेट पर 356 रन था। वीरेंदर सहवाग 228 रन बनाकर नाबाद लौटे थे। उनके जेहन में अगले दिन का खाका खिंचने लगा। सहवाग को लगने लगा था कि अगर वह क्रीज पर कुछ देर टिक गए तो वह इतिहास रच सकते हैं। और उन्होंने ऐसा किया भी। वह भारत की ओर से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तिहरा शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज बने। और इसके साथ ही उनके साथ एक टाइटल हमेशा के लिए जुड़ गया। मुलतान का सुलतान। जब-जब सहवाग का जिक्र आएगा इस नाम और इस पारी को जरूर याद किया जाएगा। नजफगढ़, दिल्ली का वह इलाका जहां के वह रहने वाले थे, के नवाब तो वह पहले से थे ही। यह एक ऐसा मुकाम था जो उनसे पहले कोई भारतीय हासिल नहीं कर पाया था। वह जब 294 पर थे तो गेंदबाजी करने सकलैन मुश्ताक आए। वही सकलैन मुश्ताक जिन्हें 'दूसरा' ईजाद करने वाला कहा जाता है। क्रिकेट के जानकार जानते हैं कि दूसरा वह गेंद होती है जो सामान्य ऑफ स्पिन की तरह दाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए टप्पा खाकर अंदर आने के बजाय बाहर निकल जाती है। बल्लेबाज इस फिरकी को समझ नहीं पाता और अकसर उसके झांसे में आ जाता। तो जब सकलैन गेंदबाजी करने आए तो सहवाग ने आगे निकलकर गेंद को ऑन साइड बाउंड्री के ऊपर से सीमा-रेखा के बाहर भेजा। कौन सा बल्लेबाज होगा जो 294 के स्कोर पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ऑफ स्पिनर्स में शुमार गेंदबाज पर यह रिस्क लेना चाहेगा। पर सहवाग तो सहवाग ठहरे। वह कब कहां किसी की सुनते हैं। उन्होंने गेंद को लॉन्ग ऑन बाउंड्री के पार भेजा। उन्होंने 364 गेंद पर 38 चौकों और छठे छक्के के साथ यह मुकाम हासिल किया। बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया भी था, 'मैंने पाजी (सचिन तेंडुलकर) से कहा भी था कि अगर सकलैन आया तो मैं छक्का मारूंगा।' हालांकि सचिन ने उन्हें सलाह दी थी कि वह इतिहास बनाने के करीब हैं इसलिए ऐसे रिस्क से बचना चाहिए। लेकिन जो रिस्क न ले वह वीरेंदर सहवाग ही कैसा। उन्होंने अपने पूरे करियर में अपने ही अंदाज में क्रिकेट खेला। उन्होंने इस मैच में शतक भी छक्के के साथ ही पूरा किया था। सहवाग सुनील गावसकर के 236, सचिन तेंडुलकर के 241 और वीवीएस लक्ष्मण के 281 के पार गए थे। वह हालांकि मैथ्यू हेडन का तब का टेस्ट क्रिकेट का सर्वोच्च स्कोर 380 नहीं तोड़ पाए। वह मोहम्मद शमी की गेंद पर 309 रन बनाकर आउट हुए। अपनी पारी में उन्होंने 539 मिनट क्रीज पर बिताए। 39 चौके और छह छक्के लगाए। भारत ने अपनी पारी 5 विकेट पर 675 रन पर घोषित की। हालांकि इस डिक्लेयरेशन को अब भी याद किया जाता है। इस मैच में कप्तानी कर रहे राहुल द्रविड़ ने जब पारी घोषित की तो सचिन तेंडुलकर 194 रनों पर बल्लेबाजी कर रहे थे। वह अपने दोहरे शतक से सिर्फ 6 रन दूर थे। खैर, भारत ने यह टेस्ट मैच पारी और 52 रन से जीतकर सीरीज में 1-0 से बढ़त बनाई थी। सहवाग ने इसके बाद 2008 में एक और तिहरा शतक लगाया। साउथ अफ्रीका के खिलाफ चेन्नै में। वह दुनिया में दो टेस्ट तिहरे शतक लगाने वाले तीसरे बल्लेबाज बने। उनसे पहले सर डॉन ब्रैडमैन और ब्रायन लारा ही ऐसा कर पाए थे। और अगर श्रीलंका के खिलाफ वह 293 पर आउट नहीं होते तो टेस्ट में तीन तिहरे तक लगाने वाले वह इकलौते बल्लेबाज होते। भारत की ओर से टेस्ट में तिहरा शतक लगाने वाले दूसरे बल्लेबाज करुण नायर ने इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नै टेस्ट में तिहरा शतक लगाया था।
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